कुछ बाकी है....
अभी भी कुछ बाकी है ,
कुछ अधूरा , कुछ खाली है।
कुछ अल्फ़ाज़ जो डरे हुए से ,
रुके हुए हैं होठो पर....
एक आवाज़ जो चीख़ रही है ,
पर पहुँच नहीं रही कानो तक....
कुछ शोरगुल तो हुआ था ,
लेकिन सन्नाटा ही सन्नाटा है।
क्या ये मैं ही हूँ या नही ,
कोई भ्रम , मिथ्या , माया है।
वो देख !
कुछ कण बिख़रे हुए हैं अभी भी ,
चिंगारी पूरी बुझी नही है।
फिर यथार्थ का सृजन कर तू ,
फिर मृत में जान भर तू।
पर क्यों ?
क्योंकि अभी भी कुछ बाकी है ,
कुछ अधूरा कुछ खाली है।
अनुश्री
Trust the wait and Embrace the uncertainty ....
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